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Saturday, November 24, 2012

शायद..................!!!!!

जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी...
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था वहां,
छत के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है....
शायद अब दुनिया सिमट रही है......

जब मैं छोटा था,
शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी....
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है..........
शायद वक्त सिमट रहा है........

जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना, वो साथ रोना,
अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाय" करते हैं,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..

Monday, July 16, 2012

अब तो ख्वाब आँखों में चुभने लगे हैं.....

आज फिर चाँद को देखते हुए गुजरी तमाम रात ना सोये ना जागे ये आँखे ना जाने किस तलाश में सारी रात चाँद को तकती रही,
खोयी रही सारी रात उस उजली सी कहकशां में आँखे,
ऐसा लगता था के चाँद के झरोखे से कोई चांदनी की पगडण्डी पे पैर रखता हुआ आँखों की तरफ आ रहा था आसमान से,
सुबह उठे तो पास के पेड़ पे कुछ पंछी चहक रहे थे रोजाना की तरह,
पर आज बोझिल सी पलके चांदनी की तरह चमक रही थी,
रात फिर तुम शायद चुपके से आँखों में आये थे और जाते हुए चांदनी के कुछ कतरे पलकों पे छोड़ गये
रात फिर तेरी यादों का एक एक मोती ख्वाबों में पिरो लिया मैंने,
बस यादें हैं और कुछ भी नहीं,
ये ज़िन्दगी है ये तो बहती रहती हैं बादलों की तरह, और कभी बरस जाती है ज़हन की साखों पे और आगे गुजर जाती है,
फिर बूँद-बूँद करके रिसते रहते हैं यादों के कतरे, कभी आँखों में टपक पड़ते हैं ख्वाब बन कर और कभी दिल की जमीं को बहा ले जाते हैं दरिया बनकर,
लेकिन कोई कब तक ख्वाबों में काटे ज़िन्दगी सारी................अब तो ख्वाब आँखों में चुभने लगे हैं "मन" .....